ग्रहों की दशा: करक और दिग्बली के आधार पर विश्लेषण
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों का प्रभाव अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। हर ग्रह का एक विशिष्ट स्थान अलग-अलग भूमिका होती है, और उसका अलग-अलग भावों में होना जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करता है। इस लेख में हम विभिन्न ग्रहों के करक और दिग्बली होने के स्थानों के बारे में चर्चा करेंगे।
1. सूर्य (Sun)
करक भाव: प्रथम और नवम भाव
दिग्बली भाव: दशम भाव
सूर्य आत्मा, आत्मविश्वास, और नेतृत्व का प्रतीक है। प्रथम भाव में सूर्य का करक होना व्यक्ति को आत्मविश्वासी बनाता है, जबकि नवम भाव में यह व्यक्ति के धर्म, भाग्य और उच्च शिक्षा को मजबूत करता है। दशम भाव में सूर्य का दिग्बली होना करियर में प्रगति और सफलता के संकेत देता है।
2. चंद्रमा (Moon)
करक भाव: चतुर्थ भाव
दिग्बली भाव: चतुर्थ भाव
चंद्रमा मन और भावनाओं का प्रतीक है। चतुर्थ भाव में चंद्रमा का करक और दिग्बली दोनों ही होना व्यक्ति के मानसिक शांति, माता से संबंध, और संपत्ति में वृद्धि का संकेत है। यह गृहस्थ जीवन को संतुलित रखने में सहायक होता है।
3. मंगल (Mars)
करक भाव: तृतीय और षष्ठ भाव
दिग्बली भाव: दशम भाव
मंगल ऊर्जा, साहस और पराक्रम का कारक है। तृतीय भाव में मंगल का करक होना साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है, जबकि षष्ठ भाव में यह व्यक्ति को चुनौतियों से निपटने की शक्ति देता है। दशम भाव में मंगल का दिग्बली होना करियर में तेजी से उन्नति और नेतृत्व गुणों का विकास करता है।
4. बुध (Mercury)
करक भाव: चतुर्थ और दशम भाव
दिग्बली भाव: प्रथम भाव
बुध बुद्धि, संवाद और व्यापार का प्रतीक है। चतुर्थ भाव में बुध का करक होना शिक्षा और मानसिक स्थिरता में मदद करता है। दशम भाव में यह करियर और व्यापार में तरक्की लाता है। प्रथम भाव में बुध का दिग्बली होना व्यक्ति को कुशल वक्ता और ज्ञानी बनाता है।
5. शुक्र (Venus)
करक भाव: सप्तम भाव
दिग्बली भाव: चतुर्थ भाव
शुक्र प्रेम, कला और वैभव का प्रतीक है। सप्तम भाव में शुक्र का करक होना वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाता है। चतुर्थ भाव में शुक्र का दिग्बली होना व्यक्ति को शारीरिक सुख-सुविधाएं और संपत्ति का मालिक बनाता है।
6. शनि (Saturn)
करक भाव: षष्ठ, अष्टम, दशम, और एकादश भाव
दिग्बली भाव: सप्तम भाव
शनि अनुशासन, परिश्रम और संघर्ष का ग्रह है। षष्ठ भाव में शनि का करक होना व्यक्ति को रोगों से लड़ने की शक्ति देता है, जबकि अष्टम भाव में यह कठिनाइयों के बीच स्थिरता प्रदान करता है। दशम भाव में शनि का करक होना करियर में स्थिरता लाता है और एकादश भाव में यह धनलाभ का संकेत देता है। सप्तम भाव में शनि का दिग्बली होना जीवनसाथी के साथ अच्छे संबंध और व्यापारिक साझेदारियों में सफलता दिलाता है।
7. बृहस्पति (Jupiter)
करक भाव: द्वितीय, पंचम, नवम, दशम, और एकादश भाव
दिग्बली भाव: प्रथम भाव
बृहस्पति ज्ञान, धर्म और समृद्धि का प्रतीक है। द्वितीय भाव में यह वाणी और धनलाभ का संकेत देता है, पंचम भाव में यह संतान और शिक्षा में सफलता दिलाता है। नवम भाव में बृहस्पति भाग्य का कारक होता है, दशम भाव में करियर में उन्नति लाता है, और एकादश भाव में यह आर्थिक समृद्धि देता है। प्रथम भाव में बृहस्पति का दिग्बली होना व्यक्ति को सम्मान और ज्ञान से परिपूर्ण बनाता है।
8. राहु (Rahu)
करक भाव: तृतीय, षष्ठ, और दशम भाव
राहु व्यक्ति की इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक है। तृतीय भाव में राहु साहस और जोखिम लेने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है, जबकि षष्ठ भाव में यह शत्रुओं पर विजय का संकेत देता है। दशम भाव में राहु का करक होना व्यक्ति को करियर में उन्नति और अप्रत्याशित सफलता प्रदान करता है।
9. केतु (Ketu)
करक भाव: द्वितीय और अष्टम भाव
केतु मोक्ष, रहस्य और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। द्वितीय भाव में केतु का करक होना व्यक्ति के वाणी और पारिवारिक जीवन को प्रभावित करता है। अष्टम भाव में केतु का करक होना व्यक्ति को आध्यात्मिकता और रहस्यमय ज्ञान की ओर अग्रसर करता है।
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